धर्म

हुक्मनामा (सवेर)

श्री हरमंदिर साहिब

धनासरी महला ५ ॥ मेरा लागो राम सिउ हेतु ॥ सतिगुरु मेरा सदा सहाई जिनि दुख का काटिआ केतु ॥१॥ रहाउ ॥ हाथ देइ राखिओ अपुना करि बिरथा सगल मिटाई ॥ निंदक के मुख काले कीने जन का आपि सहाई ॥१॥ साचा साहिबु होआ रखवाला राखि लीए कंठि लाइ ॥ निरभउ भए सदा सुख माणे नानक हरि गुण गाइ ॥२॥१७॥
हे भाई (उस गुरु की कृपा से) मेरा परमात्मा के साथ प्यार बन गया है, वह गुरु मेरा भी सदा की लिए मददगार बन गया है, जिस गुरु ने (सरन आये हरेक मनुख का) पुच्शल वाला तारा ही सदा काट दिया है (जो गुरु हरेक सरन आये मनुख के दुःख की जड़ ही काट देता है)॥१॥ रहाउ॥ (हे भाई! वह परमात्मा अपने सेवकों को अपने) हाथ दे कर (दुखों से) बचाता है, (सेवकों को) अपना बना के उनका सारा दुःख-दर्द मिटा देता है। परमात्मा अपने सेवकों का आप मददगार बनता है, और, उनकी निंदा करने वालों के मुहं काले करता है॥१॥ सदा कायम रहने वाला मालिक (अपने सेवकों का आप) रखा बनता है, उनको अपने कंठ से लगा कर रखता है। हे नानक! परमात्मा के सेवक परमात्मा के गुण गा गा कर, और, सदा आत्मिक आनंद मना कर (दुखों क्लेशों से) सदा के लिए निडर हो जाते हैं॥२॥१७॥
EDITED BY- HARLEEN KAUR

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