धर्म

हुक्मनामा (सवेर)

श्री हरमंदिर साहिब

सलोकु मः ३ ॥ नानक नामु न चेतनी अगिआनी अंधुले अवरे करम कमाहि ॥ जम दरि बधे मारीअहि फिरि विसटा माहि पचाहि ॥१॥ मः ३ ॥ नानक सतिगुरु सेवहि आपणा से जन सचे परवाणु ॥ हरि कै नाइ समाइ रहे चूका आवणु जाणु ॥२॥ पउड़ी ॥ धनु स्मपै माइआ संचीऐ अंते दुखदाई ॥ घर मंदर महल सवारीअहि किछु साथि न जाई ॥ हर रंगी तुरे नित पालीअहि कितै कामि न आई ॥ जन लावहु चितु हरि नाम सिउ अंति होइ सखाई ॥ जन नानक नामु धिआइआ गुरमुखि सुखु पाई ॥१५॥
अर्थ: हे नानक जी! अंधे अज्ञानी नाम नहीं सिमरते और अन्य अन्य काम करते हैं। (नतीजा यह निकलता है, कि) जम के द्वार पर बहुत मार खाते हैं और फिर (विकार-रूप) विष्ठे में जलते है ॥१॥ हे नानक जी! जो मनुष्य अपने सतिगुरू की बताई हुई कार करते हैं वह मनुष्य सच्चे और कबूल हैं; वह हरी के नाम में लीन रहते हैं और उनका जन्म मरण ख़त्म हो जाता है ॥२॥ धन, दौलत और माया इकठ्ठी करते हैं, परन्तु आखिर को दुखदाई होती है; घर, मंदिर और महल बनातें हैं, परन्तु कुछ साथ नहीं जाता; कई रंगों के घोड़े सदा पालते हैं, परन्तु किसी काम नहीं आते। हे भाई सज्जनों! हरी के नाम के साथ मन जोड़ो, जो आखिर में साथी बने। हे दास नानक जी! जो मनुष्य नाम सिमरता है, वह सतिगुरू के सनमुख रह कर सुख पाता है ॥१५॥
EDITED BY- HARLEEN KAUR

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!