धर्म

हुक्मनामा (सवेर)

श्री हरमंदिर साहिब

सलोकु मः ३ ॥ रे जन उथारै दबिओहु सुतिआ गई विहाइ ॥ सतिगुर का सबदु सुणि न जागिओ अंतरि न उपजिओ चाउ ॥ सरीरु जलउ गुण बाहरा जो गुर कार न कमाइ ॥ जगतु जलंदा डिठु मै हउमै दूजै भाइ ॥ नानक गुर सरणाई उबरे सचु मनि सबदि धिआइ ॥१॥ मः ३ ॥ सबदि रते हउमै गई सोभावंती नारि ॥ पिर कै भाणै सदा चलै ता बनिआ सीगारु ॥ सेज सुहावी सदा पिरु रावै हरि वरु पाइआ नारि ॥ ना हरि मरै न कदे दुखु लागै सदा सुहागणि नारि ॥ नानक हरि प्रभ मेलि लई गुर कै हेति पिआरि ॥२॥ पउड़ी ॥ जिना गुरु गोपिआ आपणा ते नर बुरिआरी ॥ हरि जीउ तिन का दरसनु ना करहु पापिसट हतिआरी ॥ ओहि घरि घरि फिरहि कुसुध मनि जिउ धरकट नारी ॥ वडभागी संगति मिले गुरमुखि सवारी ॥ हरि मेलहु सतिगुर दइआ करि गुर कउ बलिहारी ॥२३॥

अर्थ: (मोह-रूप) उथारे के दबे हुए हे भाई ! (तेरी उम्र) सोते हुए ही गुजर गई है; सतिगुरु का शब्द सुन के तुझे जाग नहीं आई और ना ही हृदय में (नाम जपने का) चाव उपजा है। गुणों से विहीन शरीर सड़ जाए जो सतिगुरु की (बताई हुई) कार नहीं करता; (इस तरह का) संसार मैंने हऊमै में और माया के मोह में जलता हुआ देखा है। नानक जी! गुरु के शब्द के द्वारा सच्चे हरि को मन में सिमर के (जीव) सतिगुरु की शरण पड़ के (इस हऊमै में जलने से) बचते हैं ॥१॥ जिस की हऊमै सतिगुरु के शब्द में रंगे जाने से दूर हो जाती है वह (जीव-रूपी) नारी सोभावंती है; वह नारी अपने प्रभु-पती के हुक्म में सदा चलती है, इसी कारण उस का श्रृंगार सफल समझो। जिस जीव-स्त्री ने भगवान-पती को खोज लिया है, उस की (हृदय-रूप) सेज सुंदर है, क्योंकि उस को पती सदा मिला हुआ है, वह स्त्री सदा सुहाग वाली है क्योंकि उस का पती भगवान कभी मरता नहीं, (इस लिए) वह कभी दुखी नहीं होती। नानक जी! गुरु के प्यार में उस की बिरती होने के कारण भगवान ने उसे अपने साथ मिलाया है ॥२॥ पउड़ी ॥ जो मनुष्य प्यारे सतिगुरु की निन्दा करते हैं वह बहुत बुरे हैं,रब मेहर ही करे! हे भाई! उन का दर्शन ना करें, वह बड़े पापी और हतियारे हैं; मन से खोटे वह आदमी विभचारन स्त्री की तरह घर घर फिरते हैं। वडभागी मनुष्य सतिगुरु की निवाजी हुई गुरमुखों की संगत में मिलते हैं। हे हरी! मैं सदके हूँ सतिगुरु से, मेहर कर और सतिगुरु को मिला ॥२३॥

 

EDITED BY- HARLEEN KAUR

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